श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा:
प्राचीन काल में, भगवान विष्णु का आवतार श्री कृष्ण उत्तर भारत के मथुरा नगरी में माता देवकी और वसुदेव के घर जन्मे थे। उनके जन्म दिवस को श्री कृष्ण जन्माष्टमी या गोकुल अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।कंस राजा, देवकी के भाई थे और उनके उपास्य देवता कृष्णा के जन्म से पहले ही उनके वध की योजना बना रहे थे। वे देवकी और वसुदेव को गहनता से बंदी बना लिए थे और सभी संतानों का वध कर देने का विचार कर रहे थे।
भगवान विष्णु ने इस समय पृथ्वी पर अधर्म को समाप्त करने के लिए अपने आवतार बनकर पृथ्वी पर आए। उन्होंने देवकी और वसुदेव से कहा कि वे उनके घर के छोटे बच्चे को उन्हें दे दें। उन्होंने भी भगवान की भक्ति के कारण उन्हें विश्वास दिया और श्री कृष्ण को गोकुल नगरी में नंद और यशोदा के यहां छुपा दिया।
श्री कृष्ण की बाल लीलाएं और नाटक गोपियों के साथ उनके बचपन की यादें हमें बड़े प्यार से याद आती हैं। उनकी माखन चुराई, माखन चोरी, मुरली बाजाने, गोपियों के साथ नाचने, शिशु गोपाल के रूप में विराजमान होना इत्यादि उनकी लीलाएं अद्भुत थीं।
कंस राजा ने अपनी वधू रुक्मिणी द्वारा भगवान विष्णु का अवतार कृष्णा से विवाह का विचार किया था, परंतु रुक्मिणी ने भगवान के साथ अपना विवाह की सबंधित समय और स्थान के बारे में भगवान को एक पत्र भेज दिया था। श्री कृष्ण ने रुक्मिणी के आग्रह पर उसी रात उसे भगवान विष्णु के साथ भगवान के विमान गरुड़ पर लेकर द्वारिका नगरी में पहुंच गए और वहां विवाह के बंधन में बंध गए।
इसी खुशी में और उत्सव के रंग में भरी द्वारिका नगरी में भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन को हर साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान के भक्त उनके मंदिरों पर भजन करते हैं और पूजा करते हैं
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