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सुंदरकांड के दोहे

July 26, 2023 By SANJAY CHOUBEY Leave a Comment

सुंदरकांड, श्रीरामचरितमानस के एक अंश है जो भगवान श्रीराम और हनुमानजी की महाकाव्यिक कथा को वर्णन करता है। नीचे मैंने सुंदरकांड के दोहे उनके अर्थ सहित दिए हैं:

  1. जो राम चरित अनुकथा सुनाए। राम भगति सहित मोहि पाए॥ अर्थ: जो कोई श्रीरामचरित गाता है और राम की भक्ति से मुझे प्राप्त करता है, वह पुरुष मुझे प्रिय होता है॥
  2. कवि करी मुद्रिका लेखापायी। तात मिलि जनि जनि अति उपकारी॥ अर्थ: कवि ने मुद्रिका से राम की चरित्र का वर्णन किया है और लोगों को सच्चे तथ्य के साथ बहुत उपकार किया है॥
  3. बिस्वास करैं चरित अनुसारी। बिनय नहिं मोहिं सुर असुर आरी॥ अर्थ: जो लोग रामचरित्र का विश्वास करते हैं, मुझसे विनती बिना वे देवता और असुर भी मेरे शरणागत होते हैं॥
  4. जैसे सुर बर गिरि तुलसी धारी। द्रोण सिन्धु जब अनेक बारी॥ अर्थ: जैसे सुर ने बरगद को अपनी डाल से गिराया था, ठीक वैसे ही जब द्रोणसरोवर को अनेक बार तुलसीदास ने अपनी पद्म कल्प वृक्ष से गिराया॥
  5. जैसे भ्राता सहाय भाई। सो समय हरष में लीन्ह आई॥ अर्थ: जैसे भाई अपने भ्राता की सहायता के लिए आते हैं, ठीक वैसे ही हनुमानजी समय पर हर्ष में श्रीराम के पास आए॥
  6. सिंधु कृपा देहु महाराज। सुरासुर नृप जन हितकारी॥ अर्थ: हे महाराज! मेरे प्रिय भगवान! कृपा करके मुझे सुर और असुर दोनों नृपों के हित के लिए शक्ति प्रदान करें॥
  7. सर्व शक्तिमान कवि सोई। रहीमन भाव रामहि भाई॥ अर्थ: सभी शक्तिशाली देवताओं में उन्ही को कवि रहीम कहते हैं, क्योंकि उन्होंने श्रीराम के रूप में निहित भाव को प्राप्त किया है॥
  8. सागर उठै तरंग अब बहुबिधी। दो0-जैसे मन नहिं लिव लव दीधी॥ अर्थ: जैसे समुद्र की लहरें अब विभिन्न दिशाओं में बहती हैं, ठीक वैसे ही मन भी लव और कुश के अस्तित्व को समझ नहीं पा रहा है॥
  9. सुंदरकांड में हनुमानजी द्वारा भगवान श्रीराम की खोज और लंका का भ्रमण का वर्णन है। नीचे मैंने सुंदरकांड के कुछ दोहे उनके अर्थ सहित दिए हैं:
  10. बिनय करैं रघुनाथ तैं हमारी। करहु अनुज सहाय कपिसहायरी॥ अर्थ: हे रघुनाथ! हम आपकी भक्ति और विनय के साथ आपसे प्रार्थना करते हैं। कृपया हमारी मदद करें, हे हनुमानजी, कपिसहायकर्ता॥राम द्वारा दई जाहि जिन्ह को। सो तनु धन धान्य बिहीन हो॥ अर्थ: जिनको श्रीराम ने दया की नजर से देख लिया, उनके शरीर में धन, धान्य और समृद्धि की कमी नहीं रही
  11. जैसे काम सकल जगत त्रासी। लंका उर लँघ गई निरासी॥ अर्थ: जैसे कामनाओं से संपूर्ण जगत भयभीत होता है, ठीक वैसे ही भयभीत होते हुए लंका का दर्शन करने के बाद सभी आशाएं नष्ट हो गईं॥
  12. जैसे बिद्या सब शुक सिंधु आपी। बिद्याधर बिमल बचन कर जापी॥ अर्थ: जैसे शुक सिंधु विद्या को अवगत करते हैं और विद्याधर श्रीकृष्ण की महिमा का जप करते हैं॥
  13. चहुँ और नेति बुधि चहुँ सोई। सो गति गाय जग गति कोई॥ अर्थ: बुद्धि चारों दिशाओं में घूमती है, वैसे ही जगत में कोई भी गति उस बुद्धि के समान नहीं है॥
  14. जैसे समुद्र शास्त्र ते हाथी। बृंदवन सीस अरु गो ग्राम्ही॥ अर्थ: जैसे समुद्र में शास्त्र और हाथी मिलते हैं, ठीक वैसे ही बृंदावन में गोपियों और ग्रामीण लोग मिलते हैं॥सागर समान कपिराज जैसे। दो0-तुम्ह पाएं राम उर अंग नें॥ अर्थ: कपिराज हनुमानजी तुल्य हैं समुद्र के समान, तुम्हारे हृदय और शरीर में ही श्रीराम निवास करते हैं॥
  15. राम सिया रवि सहित दीपका। तृप्त भएं जगत नृप भूपका॥ अर्थ: जैसे सीता-राम, सूर्य और दीपक सहित जगत के नृपति राजा तृप्त हो जाते हैं

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